University Elections

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छात्रसंघ चुनावों के नतीजे २ दिन पहले आ गए. जीत का जश्न और हार का गम अभी जारी है. दोनों ही जाते से ही जायेंगे.

लेकिन एक सवाल जो हर साल होने वाले इन चुनावों में मेरे मन में आता है की इन चुनावों में छात्र हित में क्या काम किया जाता है? एक साल बहुत कम है कुछ बदलाव लाने ले लिए, लेकिन फिर भी जो ज्ञापन, आंदोलन चुनावों से पहले होते हैं और वोह छात्र हित की बातें बाद में नज़र क्यूँ नहीं आती.

हमारा निवास उदयपुर के उस रोड पर स्थित है जहाँ शायद छात्रसंघ चुनावों की सबसे ज्यादा गहमागहमी नज़र आती है. मेरे स्कूल के दिनों में चुनाव के वक़्त तो घर से बहार निकलना मुश्किल हो जाता था यहाँ तक की लोग अपनी दुकानें भी बंद ही रखते थे. नामांकन रैली, वोटिंग डे और विजय जुलस ऐसे दिन तो जो इस एरिया में रहने वालों की दिनचर्या में बदलाव ला देते थे.

मैंने कॉलेज मुंबई से किया जहाँ इस तरह के डायरेक्ट चुनाव पर पाबन्दी थी. कैंपस में शान्ति थी. 7 साल के कॉलेज में (ग्यारवीं से पोस्ट ग्रेजुएशन तक) सिर्फ दो बार ही वोट पड़े वोह भी एक प्रयोग के रूप में और शुक्र है की वोह भी बाद में कंटिन्यू नहीं करे गए.

लेकिन हमारे यहाँ यानि राजस्थान में स्थिति सुधरी लिन्दोह कमेटी की सिफारिशों के बाद, पहले जैसा हुडदंग नज़र नहीं आता था, थोड़े नियमों का पालन होने लगा, थोड़ी सख्ती दिखने लगी. फिर भी एक आदर्श छात्र चुनाव प्रक्रिया आने में अभी और वक़्त लगेगा !!

आशा है आने वाले समय में हमारे छात्र संघ चुनावों में धनबल, बाहुबल और जातिवाद से निकल करे ऐसे नेताओं की फौज तैयार करें जिनको देख कर युवा और खासकर युवतियाँ राजनीती से जुड़ना चाहें देशहित के लिए.

जब तक यह हो क्या यह संभव है की अब हर साल होने वालों चुनावों में पिछले बार वाला अपना लेखा-जोखा प्रस्तुत करे?

Published by Deepak Sukhadia

A proud Congressman and a Rotarian !! An avid book reader, movie buff and a cycling enthusiast.

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