दो दिन पूर्व नानीजी अपने भगवान् महावीर के पास हमेशा के लिए चले गए और साथ ही गुज़र गया मेरे बचपन का कुछ हिस्सा और छोड़ गया तो सिर्फ धुंधली ओझल यादें.
मेरे को उनकी पीढ़ी से जोड़ती वह आखरी कढ़ी थी जो हमेशा के लिए खुल गयी.
अब कौन देखेगा हम सब को मोटे से चश्मे के पीछे से घूरते हुए?
कौन प्यार से शब्दों के बाण और ताने मारेगा?
कौन अब कहावतों और लोकोक्तियों की बरसात करेगा. किस से उनका मतलब पूछेंगे ?
कड़क आवाज़ और उतने ही कड़क तेवर. नियम के पक्के और अपने धर्म के प्रति कट्टर. अगर मेरे दादेरे में हर कुछ करने की छुट थी तो गर्मी की छुट्टियों में नानेरे में थोडा अनुशासन सिखाया. अगर दादी ने थाली में झूठा छोड़ने में कुछ नहीं कहा तो नानी ने इस पर सीख दी.
याद रहेगी जेम पैलेस की रोठ तीज, वह रसोईघर के स्टील के डब्बे में भरे आटे की बिस्किट, वह नियम से रात को दूध पीना और वह नाश्ते में बनायीं गयी ताज़ा गरम मठरियां.
शायद मिलेगा अब भी वह सब वहां भी , लेकिन उनको देने वालीं नानी ना रहेंगी.
बचपन में उनके अनुशासन से थोडा डर लगता था लेकिन उनकी सीख अब याद आती है. कोशिश करता हूँ अपने बच्चों में भी वही सब सिखाने की. इस बात का संतोष है मेरी मां अपनी माँ की कॉपी निकली जिससे वही अनुशासन का पाठ मेरे बच्चों को समय-समय पर मिलता रहता है और नानेरे के जैन धर्म से जोड़े रखता है.
नानीजी आप हमेशा याद रहोगे.