आप सभी को राम मंदिर के शिलान्यास पर बहुत बहुत बधाइयाँ.
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसला मंदिर के हक में दे कर, हमेशा के लिए इस विवाद पर विराम लगा दिया. कल उसी राह में आगे बढकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने मंदिर का शिलान्यास कर अरबों लोगों की आस्था और आकान्शा पूरी कर दी.
इसी के साथ लगभग 500 साल के क्रूर खुनी इतिहास का अंत हुआ. जो बीत गया सो बीत गया अब आगे की सोच. लेकिन शायद कुछ अति उत्साहित लोग इस जीत में भी दुसरे का उपहास करने से नहीं रोक पाए. मेरे एक फेसबुक मित्र को ले लीजिये दो दिन पूर्व मेरी एक पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा की “Biggest day tday ram mandir ka shilanyas hai bhai sb uski badhai do” !!
हो सकता है यह एक बिना सोची समझी ऐसी ही टिपण्णी हो या मैं खुद ही इस का ज़रूरत से ज्यादा मतलब निकाल रहा हूँ, लेकिन आज उन्हीं के तरह बहुत लोग हैं जिनकी यह धारना बन गयी है की मेरी राजनैतिक विचारधारा मुझे इस भव्य मंदिर की शुभकामनाएं देने से रोकती है. यह मंदिर किसी विचारधारा के होने या न होने से नहीं बल्कि न्यायपालिका द्वारा सोचा-समझा फैसले के तहत संभव हुआ है. अगर किसी के मन में कोई भी संशय रहा होगा वह 9 नवम्बर 2019 से हमेशा के लिए ख़त्म हो जाना चाहिए था.
मेरी आस्था और मेरे भगवान् मेरे अपने हैं, दुनिया को दिखने के लिए नहीं. यह बात अलग है की सोशल मीडिया पर मैं कई बार इन के पोस्ट डालता हूँ लेकिन ऐसी पोस्ट डालने और ना डालने से मेरे धर्म और आस्था में कोई फरक नहीं पड़ता.
आज ऐसा माहौल बन गया है की हम सब को अपनी आस्था / अपना धर्म अपने साथ ले कर नुमाइश करनी पड़ती है की जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही है की मुझसे बेहतर हिन्दू कौन ?? और यह अब हर धर्म अनुयायिओं पर लागु होता है.
पिछले कुछ दिनों से मीडिया समूह अयोध्या में डेरा डाले हुए थे और वहां से सीधा प्रसारण कर रहे थे. एक व्यक्ति जो की काले चश्मे पहने हुए था का इंटरव्यू लेते समय टीवी एंकर ने मज़ाक में उस से पूछा की यह काले चश्मे फोटोक्रोमेटिक (धूप में जो काले हो जाते हैं) हैं क्या , तो वह बोले की वह हमेशा काले ही चश्मे पहनते हैं !!
यही हाल कुछ लोगों का हो गया है की वह एक ही चश्मे से आठों पहर देखना चाहते हैं जो उनके दृष्टिकोण को संकीर्ण बना के रख देता है.
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |
अर्थात् : यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है; इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |
चलिए हम सब प्रतिज्ञा ले एक शांत, समृध और सौहार्द से परिपूर्ण भारत की.
जय सिया राम !!